सुकून मिलता है दो लफ़्ज़ों को कागज पर उतार कर
चीख भी लेते हे और आवाज भी नही आती

तुझसे अच्छे तो जख्म हैं मेरे
उतनी ही तकलीफ देते हैं जितनी बर्दास्त कर सकूँ

ज़िक्र ना करना उनका बाजार में
आ गई जो क़यामत कुछ क़त्ल के इलज़ाम तुझ पर लग जाएंगे

तु बदनाम ना हो ईसीलिए जी रहा हु मै
वरना तेरी चौखट पे मरने का ईरादा रोज होता है

मेरे मरने का एलान हुआ तो
उसने भी यह कह दिया अच्छा हुआ मर गया,बहुत उदास रहता था

मरना होता तो कबके मर गए होते
तेरी यादों में हर रोज़ मरने का मज़ा कुछ अलग ही है

ज़िन्दगी का ये हूनर भी आज़माना चाहिए
जंग अगर अपनो से हो तो हार जाना चाहिए
er kasz

ये नक़ाब तुम्हारे झुठ का उतरेगा जिस दिन खुद से नज़रें मिलाने को तरसोगे उस दिन !!

नींद आए या ना आए चिराग बुझा दिया करो
यूँ रात भर किसी का जलना, हमसे देखा नहीं जाता

यूं अकड मे रहना बंद कर दें वो तो प्यार है तूजसे
वरना गरज तो किसी के बाप की भी नहीं

उसे कह दो अपनी ख़ास हिफाज़त किया करे
बेशक साँसें उसकी हैं मगर जान तो वो हमारी है

आज फिर बैठा हूँ हिचकियों के इन्तिज़ार में.
देखूं तो सही तुम कब मुझे याद करते हो ।।

इंसान को अपनी औकात भूलने की बीमारी है
और कुदरत के पास उसे याद दिलाने की अचूक दवा

आजा की अब लाश तेरी गलियों से गुज़र रही है
देखो मरने के बाद भी हमने रास्ता नही बदला

मुझको मेरे वजूद की हद तक न जान पाओगे….
बेहद , बेहिसाब, बेमिसाल बेइन्तहा हूँ मैं.…!!!!