दुवा में उसे मागने के लिए हाथ उठाया तो आवाज आई
औकात में रहा करो इतना बुलंद तुम्हारा नसीब कहा

जरूरतों के समय उसका मुझे याद करना
शायद इसलिए कभी उसने कहा था की दिल तुम्हारा मंदिर की तरह है

मेरे दिल ने अपनी वसीयत मे लिखा है..।
मेरा कफन उसी दुकान से लाना जिससे वो अपना दुपटटा खरीदती है

मेरे चेहरे से कफ़न हटा कर जरा दीदार तो कर लो ऐ जान
बंद हो गई है वो आँख जिन्हे तुम रुलाया करते थे

टूटे हुए सपनो और छुटे हुए अपनों ने मार दिया
वरना ख़ुशी खुद हमसे मुस्कुराना सिखने आया करती थी

तेरी याद जब भी आती है उसे रोकते नहीँ हम क्योँ` की
जो बगैर दस्तक के आते हैँ वो लोग अपने ही होते हैँ

मेरी तन्हाइयाँ कर रही हैं सवाल मुझसे
कहाँ है वो सख्श जिसके हर लम्हे़ं की जरुरत तुम हुआ करते थे

अख़बार का भी अजीब खेल हैसुबह अमीर के चाय का मजा बढाती है
और रात में गरीब के खाने की थाली बन जाती है

जिसे शिद्दत से चाहो वो मुद्दत से मिलता है
बस मुद्दत से ही नहीं मिला कोई शिद्दतसे चाहने वाला
Er kasz

वह कितना मेहरबान था कि हज़ारों गम दे गया
हम कितने खुदगर्ज़ निकले कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा

वह कितना मेहरबान था कि हज़ारों गम दे गया
हम कितने खुदगर्ज़ निकले कुछ ना दे सके उसे प्यार के सिवा

काश ये इश्क भी चुनावों की तरह होता
हारने के बाद विपक्ष में बैठकर कम से कम
दिल खोलकर बहस तो कर लेते

इश्क इश्क का जमाने में फर्क क्या होता है
कही इश्क की जरूरत होती है
और कही जरूरत का इश्क होता है
er kasz

दिया जरुर जलाऊंगा चाहे मुझे ईश्वर मिले न मिले
हो सकता है दीपक की रोशनी से किसी मुसाफिर को ठोकर न लगे

मुझे कुछ अफ़सोस नहीं कि मेरे पास सब कुछ होना चाहिए था
मै उस वक़्त भी मुस्कुराता था जब मुझे रोना चाहिए था