बड़ा अजीब जहर है तेरी यादों में
लगता है सारी उम्र गुजर जायेगी मुझे मरते मरते

और तुम्हे इससे भी ज्यादा क्या करीब लाऊ
कि तुम्हे दिल में रखकर भी दिल नही भरता

देखी जो नब्ज़ मेरी तो हंसकर बोला हकीम
जा दीदार कर उसका जो तेरे हर मर्ज़ की दवा है

ए खुदा अब तू मुझे मुझी से मिलवा भी दे
बहुत हो चूका गैरों के कन्धो का सहारा लेना

मत पूछो की किस तरह गुजर रही है ज़िन्दगी
उस दौर से गुजर रहे हैं जो गुजरता ही नहीं

इतनी धूल और सीमेंट है अब शहर की हवाओं में
कब दिल पत्थर का हो गया पता ही नहीं चला

मेरे साथ बैठ के वक़्त भी रोया एक दिन
बोला बन्दा तू ठीक है मैं ही खराब चल रहा हूँ.

खामोशी मे ही कह दी तूने ढेर सारी बाते
इन्हे सुन सुन के बीतेगी न जाने कितनी राते

अब समझ लेते है मीठे लफ़्ज की कड़वाहटें
हो गया है जिन्दगी का तजुर्बा थोड़ा बहुत

वो नरम लबों का मेरे लबों को चूम कर कहना
हो गयी न जिद पूरी कोई देख न ले अब तो जाने दो

तुझसे अच्छे तो जख्म हैं मेरे
उतनी ही तकलीफ देते हैं

जितनी बर्दास्त कर सकूँ

इंसान को अपनी औकात भूलने की बीमारी है
और कुदरत के पास उसे याद दिलाने की अचूक दवा

मुझे देख कर उसने नफरत से फेर लिया चेहरा
तसल्ली हो गयी दिल को चलो वो पहचानता तो है

वो याद करेगी जिस दिन भी मेरी मोहब्बत को
रोएगी बहुत वो उस दिन फिर मेरी होने के लिए

हमारे बाद भी नही आएगा तुम्हे चाहत का मज़ा,
तुम सबसे कहती फिरोगी हमे चाहो उसकी तरह !