जिन्हें सलीका है तहजीब-ए-गम समझने का उन्ही के रोने में आंसू नजर नही आते।

मर भी गया तो उसे खबर ना करना ए दोस्तों
अगर वो रो पड़ी तो ये दिल फिर धड़क उठेगा

खुश्क आँखों से भी अश्कों की महक आती है; मैं तेरे गम को ज़माने से छुपाऊं कैसे।

जान-ए-तनहा पे गुज़र जायें हज़ारों सदमें; आँख से अश्क रवाँ हों ये ज़रूरी तो नहीं।

तुमने कहा था आँख भर के देख लिया करो मुझे; अब आँख भर आती है पर तुम नज़र नहीं आते​।

भीगी भीगी सी ये जो मेरी लिखावट है; स्याही में थोड़ी सी मेरे अश्कों की मिलावट है।

उस की आँखों को कभी गौर से देखा है फ़राज़; रोने वालों की तरह और जागने वालों जैसी है।

बहुत सोचा बहुत समझा बहुत ही देर तक परखा; तन्हा हो के जी लेना मोहब्बत से बेहतर है।

अक्सर तन्हाई में सोच कर हँस देता हूँ की मुझे
सब याद है लेकिन मैं किसी को याद नही

निकल जाते हैं तब आंसू जब उनकी याद आती है! जमाना मुस्कुराता है मुहब्बत रूठ जाती है!

जिस जिस को मिली खबर सबने एक ही सवाल किया
तुमने क्यों की मुहब्बत तुम तो समझदार थे

अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम पर,
अगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती..

हुए जिस पे मेहरबां तुम कोई खुशनसीब होगा; मेरी हसरतें तो निकली मेरे आंसुओं में ढल के।

अजीब मजाक करती हैं यह नौकरी
काम मजदूरों वाले कराती हैं और लोग साहब कहकर बुलाते हैं

हर बात पर नम हो जाती हैं आँखें मेरी अक्सर; जहाँ भर के अश्क खुदा मेरी पलकों में रख भूला।