तेरी यादें अक्सर छेड़ जाया करती हैं
कभी अा़ँखों का पानी बनकर कभी हवा का झोंका बनकर

वक़्त-ए-रुखसत पोंछ रहा था मेरे आँसू अपने आँचल से; उसको ग़म था इतना कि वो खुद रोना भूल गया।

आकर ज़रा देख तो तेरी खातिर हम किस तरह से जिए; आंसु के धागे से सीते रहे हम जो जख्म तूने दिए!

और ज्यादा भड़काते हो तुम तो आग मोहब्बत की; सोजिश-ए-दिल को ऐ अश्को क्या ख़ाक बुझाना सीखे हो।

​समुंदर बहा देने का जिगर तो रखते हैं लेकिन​;​हमें आशिकी की नुमाइश की आदत नहीं है दोस्त​।

जाने कब-कब किस-किस ने कैसे-कैसे तरसाया मुझे; तन्हाईयों की बात न पूछो महफ़िलों ने भी बहुत रुलाया मुझे|

सिर्फ चेहरे की उदासी से भर आये तेरी आँखों में आँसू हमदम; मेरे दिल का क्या आलम है ये तो तू अभी जानता नहीं!

आज किसी की दुआ की कमी है! तभी तो हमारी आँखों में नमी है! कोई तो है जो भूल गया हमें! पर हमारे दिल में उसकी जगह वही है!

हर रिश्ते को अजमाया है हमने! कुछ पाया पर बहुत गवाया है हमने! हर उस शख्स ने रुलाया है! जिसे भी हमने इस दिल में बसाया है !

दिल के ज़ख्मो पर मत रो मेरे यार; वक़्त हर ज़ख्म का मरहम होता है; दिल से जो सच्चा प्यार करे; उनका तो खुदा भी दीवाना होता है|

आगोश-ए-सितम में छुपाले कोई; तन्हा हूँ तड़पने से बचा ले कोई; सूखी है बड़ी देर से पलकों की जुबां; बस आज तो जी भर के रुला दे कोई।

क्या हूँ मैं और क्या समझते है; सब राज़ नहीं होते बताने वाले; कभी तनहाइयों में आकर देखना; कैसे रोते है सबको हंसाने वाले।

क्या देते किसी को मुस्कुराहट हम अपने अश्कों से ज़ार-ज़ार थे; क्या देते किसी को ज़िंदगी का तोहफा हम तो अपनी मौत से बेज़ार थे।

मैंने आंसू को समझाया; भरी महफ़िल में ना आया करो; आंसू बोला तुमको भरी महफ़िल में तन्हा पाते है; इसीलिए तो चुपके से चले आते है!

दर्द कितने हैं बता नहीं सकता; जख्म कितने हैं दिखा नहीं सकता; आँखों से समझ सको तो समझ लो; आँसु गिरे हैं कितने गिना नहीं सकता।