मैं उसके हाँथों में था टूटे हुए शीशे की तरह
बड़ी उम्मीद थी कि वो बिखरने नहीं देगा
बस गिराया कुछ इस तरह से उसने मुझे
कि फिर सिमटने की आस न रही

बस यही दो मसले ज़िन्दगी भर ना हल हुए
ना नींद पूरी हुई ना ख्वाब मुकम्मल हुए
वक़्त ने कहा काश थोड़ा और सब्र होता
सब्र ने कहा काश थोड़ा और वक़्त होता

मैं आज तक नहीं समझ पाया कि
लोगों को "ईश्वर" से शिकायत क्यों रहती हैं
उन्होने हमारे पेट भरने की जिम्मेदारी ली हैं भाई
पेटियां भरने की नहीं.

उनका हाल भी कुछ आप जैसा ही होगा
आपका हाले दिल उन्हें भी महसूस होगा
बेकरारी के आग में जो जल रहे हैं आप
आपसे ज्यादा उन्हें इस जलन का एहसास होगा

उसकी याद हमें बेचैन बना जाती हैं हर जगह हमें उसकी सूरत नज़र आती हैं
कैसा हाल किया हैं मेरा आपके प्यार ने नींद भी आती हैं तो आँखे बुरा मान जाती हैं

वो सामने थी और हम पलके उठा ना सके;
चाहते थे पर पास उनके जा ना सके;
ना देख ले वो अपनी तस्वीर हमारी आँखों में;
बस यही सोच कर हम उनसे नज़रे मिला ना सके।

हसरत है सिर्फ तुम्हें पाने की, और कोई ख्वाहिश नहीं इस दीवाने की,
शिकवा मुझे तुमसे नहीं खुदा से है,
क्या ज़रूरत थी, तुम्हें इतना खूबसूरत बनाने की !!

दर्द हैं दिल मैं पर इसका ऐहसास नहीं होता
रोता हैं दिल जब वो पास नहीं होता
बरबाद हो गए हम उनकी मोहब्बत मे
और वो कहते हैं कि इस तरह प्यार नहीं होता

लड़के की जमकर पिटाई करने के बाद
लोगो ने लडकी और उसकी स्कूटी को
उठा कर पूछा....
कहीं चोट तो नहीं लगी..?
लडकी- नहीं! रोज का काम है
स्कुटी सीख रही हूं।

दो दिलो की मोहब्बत से जलते हैं लोग;
तरह-तरह की बातें तो करते हैं लोग;
जब चाँद और सूरज का होता है खुलकर मिलन;
तो उसे भी "सूर्य ग्रहण" तक कहते हैं लोग!

शिष्य ने बुद्ध से पुछा,"ज़हर क्या होता है"?
बुद्ध ने बहुत सुन्दर जवाब दिया...
..."हर वो चीज़ जो ज़िन्दगी में आवश्यकता से अत्यधिक होती है वही ज़हर होती है..."

छोटी सी बात पे लोग रूठ जाते हैं
हाथ उनसे अनजाने में छूट जाते हैं
कहते हैं बड़ा नाज़ुक है अपनेपन का यह रिश्ता
इसमें हँसते-हँसते भी दिल टूट जाते हैं

मत मुस्कुराओ इतना की फूलो को खबर लग जाये
हम करें आपकी तारीफ और आपको नजर लग जाये
खुदा करे बहुत लम्बी हो आपकी जिंदगी
और उस पर भी हमारी उम्र लग जाये

जो हम न सोच सकें लोग सोच लेते हैं दिखा के ख़्वाब वो आँखों को नोच लेते हैं
कभी जो आँख के कोनों पे झिलमिलाते हैं वो आँसू ग़मज़दा पलकों से पोंछ लेते हैं

आरज़ू होनी चाहिये किसी को याद करने की,
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं ..
कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को,
याद वही आते हैं, जो उड़ जाते हैं ….!