सुख सुविधा के कर लिये जमा सभी सामान
कौड़ी पास न प्रेम की बनते है धनवान

जब तेरा दर्द मेरे साथ वफ़ा करता है
एक समन्दर मेरी आँखों से बहा करता है

अब तो शायद ही मुझे कोई अपनाऐ
क्य़ोकि मेरी आखोँ मेँ अब तुम साफ नजरआते हो

हम तो अब भी खडे है तेरे इनतजार मे
उसी राह मे बेसबब बेइनतहा मोहब्बत लिए

लोग तो लिखते रहे मेरी पर ग़ज़ल
तुमने इतना भी ना पूछा, तुम उदास क्यों हो

वो एक ख़त जो तूने कभी लिखा ही नहीं
मैं रोज़ बैठ के उसका ज़वाब लिखता हूँ

तुम सो जाओ अपनी दुनिया में आराम से
मेरा अभी इस रात से कुछ हिसाब बाकी है

दावा वफा का....
और
चाहत जिस्म की....
अगर यही इश्क है..
तो फिर हवस क्या है...?

आइना अगर टूट जाये तो वो चहेरे तो दिखता है
लेकिन एक नही कई चहरे दिखता है

कुछ तो होता है जो मजबूर कर देता है
वरना जमाने में तुझसे हसीं भी बहुत थे

तुम्हे कया पता किस दर्द में हुँ में
जो कभी लिया नही उस कर्ज में हुँ में

रोने से अगर वो मिल जाये तो
भगवान की कसम इस धरती पे सावन की बरसात लगा दूँ

रोने से अगर वो मिल जाये तो
भगवान की कसम इस धरती पे सावन की बरसात लगा दूँ

जिन लम्हो का जिक्र आज तू हर एक से करती है
उनसे रुबरु तो हमने कराया था ना

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा; इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा।