दिल से रोये मगर होंठो से मुस्कुरा बेठे! यूँ ही हम किसी से वफ़ा निभा बेठे! वो हमे एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का! और हम उनके लिये जिंदगी लुटा बेठे!

रीत है जाने यह किस ज़माने की; जो सज़ा मिलती हैं यहाँ किसी से दिल लगाने की; ना बसाना किसी को दिल में इतना कि; फिर दुआ माँगनी पड़े रब से उसे भुलाने की।

दर्द ही सही मेरे इश्क़ का इनाम तो आया; खाली ही सही होठों तक जाम तो आया; मैं हूँ बेवफा सबको बताया उसने; यूँ ही सही चलो उसके लबों पर मेरा नाम तो आया।

सपना हैं आँखों में मगर नींद नहीं है; दिल तो है जिस्म में मगर धड़कन नहीं है; कैसे बयाँ करें हम अपना हाल-ए-दिल; जी तो रहें हैं मगर ये ज़िंदगी नहीं है।

किसी के दिल में बसना कुछ बुरा तो नही; किसी को दिल में बसाना कोई खता तो नही; गुनाह हो यह ज़माने की नजर में तो क्या; यह ज़माने वाले कोई खुदा तो नही।

वादा करके वो निभाना भूल जाते हैं; लगा कर आग फिर वो बुझाना भूल जाते हैं; ऐसी आदत हो गयी है अब तो उस हरजाई की; रुलाते तो हैं मगर मनाना भूल जाते हैं।

मुद्दत से कोई शख्स रुलाने नहीं आया; जलती हुई आँखों को बुझाने नहीं आया; जो कहता था कि रहेंगे उम्र भर साथ तेरे; अब रूठे हैं तो कोई मनाने नहीं आया।

कभी तो सोच तेरे सामने नहीं गुज़रे; वो सब समय जो तेरे ध्यान से नहीं गुज़रे; ये और बात है कि उनके दरमियाँ मैं भी; ये वाकिये किसी तकरीब से नहीं गुज़रे।

वो रास्ते में पलटा तो रुक गया मैं भी; फिर कदम कदम न रहे सफर सफर न रहा; नज़रों से गिराया उसको कुछ इस तरह हम ने; कि वो खुद अपनी नज़रों में मुताबिर न रहा।

मोहब्बत से वो देखते हैं सभी को बस हम पर कभी ये इनायत नहीं होती; मैं तो शीशा हूँ टूटना मेरी फ़ितरत है इसलिए मुझे पत्थरों से कोई शिकायत नहीं होती।

वादे वफ़ा करके क्यों मुकर जाते हैं लोग; किसी के दिल को क्यों तड़पाते हैं लोग; अगर दिल लगाकर निभा नहीं सकते; तो फिर क्यों दिल से इतना लगाते हैं लोग।q

मंजिल भी उसकी थी रास्ता भी उसका था; एक मैं अकेला था बाकी काफिला भी उसका था; साथ-साथ चलने की सोच भी उसकी थी; फ़िर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उसका था।

उनके होंठों पे मेरा नाम जब आया होगा; ख़ुद को रुसवाई से फिर कैसे बचाया होगा; सुन के फ़साना औरों से मेरी बर्बादी का; क्या उनको अपना सितम न याद आय होगा?

एक मुद्दत से मेरे हाल से बेगाना है; जाने ज़ालिम ने किस बात का बुरा माना है; मैं जो ज़िद्दी हूँ तो वो भी कुछ कम नहीं; मेरे कहने पर कहाँ उसने चले आना है।

हसीनो ने हसीन बन कर गुनाह किया; औरों को तो ठीक पर हमें भी तबाह किया; अर्ज़ किया जब ग़ज़लों में उनकी बेवफाई का; औरों ने तो ठीक उन्होंने भी वाह-वाह किया।