आरज़ू होनी चाहिये किसी को याद करने की,
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं ..
कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को,
याद वही आते हैं, जो उड़ जाते हैं ….!

तुम्हारी पसंद हमारी चाहत बन जाऐ
तुम्हारी मुस्कुराहट दिल की राहत बन जाऐ
खुदा खुशियाों से इतना खुश कर दे आपको
कि आपको खुश देखना हमारी आदत बन जाऐ

इश्क ओर दोस्ती मेरे दो जहान है
इश्क मेरी रुह तो दोस्ती मेरा ईमान है
इश्क पर तो फिदा करदु अपनी पुरी जिंदगी पर दोस्ती पर मेरा इश्क भी कुर्बान है
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प्यार की हर रसम निभाई थी मैने
तुम्हें पाने के लिए हर किश्ती डुबाई थी मैने
तुमने कदर ना जानी मेरी वफाओ की
तुम्हारी चाहत में हर खुशी लुटाई थी मैने

दिल में तमनाओं को दबाना सीख लिया
गम को आँखों में छिपाना सीख लिया
मेरे चहरे से कहीं कोई बात जाहिर ना हो
दबा के होंठों को हमने मुस्कुराना सीख लिया

शहर अगर तलब करे तुम से इलाज-ए-तीरगी; साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो। अनुवाद: इलाज-ए-तीरगी = अंधेरे के लिए इलाज साहिब-ए-इख़्तियार = अधिकारिक व्यक्ति

अपने मुकद्दरका ये सिला भी क्या कम है
एक खुशी के पीछे छुपे हजारो गम है
चहेरे पे लिये फिरते है मुश्कुराहट फिर भी
और लोग कहते है, कितने खुशनसीब हम है

तुम्हारी आँखों ने पायी है झील सी गहराई
उपर से घने बालों की काली घटा है छाई
कमल की कलियों का रंग नर्म होटों पे सजा
ए हुस्न की देवी ये दिल तोडके ना जा

बहुत चाहेंगे तुम्हे, मगर भुला ना सकेगे
ख्यालों में किसी ओर को ला ना सकेंगे
किसी को देखकर आँसु तो पोंछ लेंगे
मगर कभी आपके बिना मुस्कुरा ना सकेंगे

दिल में छिपी यादों से मैं सवारूँ तुझे,
तू दिखे तो अपनी आँखों मै उतारू तुझे !
तेरे नाम को अपने लबों पर ऐसे सजाऊ,
गर सो भी जाऊ तो ख्वाबो में पुकारू तुझे !!

जिसमे याद ना आए वो तन्हाई किस काम की; बिगड़े रिश्ते ना बने तो खुदाई किस काम की; बेशक इंसान को ऊंचाई तक जाना है; पर जहाँ से अपने ना दिखें वो उँचाई किस काम की।

मैने आज रब से कहा:- वो चली गयी मुझे अकेला छोडकर ना जाने ऐसी क्या मजबूरी थी
खुदा ने मुस्कुरा के कहाँ:- इसमे उसका कोई कसूर नही ये कहानी मैने लिखी ही अधूरी थी

दुनियाँ को इस का चेहरा दिखाना पड़ा मुझे
पर्दा जो दरमियां था हटाना पड़ा मुझे
रुसवाईयों के खौफ से महफिल में आज
फिर इस बेवफा से हाथ मिलाना पड़ा मुझे

दुनियाँ को इस का चेहरा दिखाना पड़ा मुझे
पर्दा जो दरमियां था हटाना पड़ा मुझे
रुसवाईयों के खौफ से महफिल में आज
फिर इस बेवफा से हाथ मिलाना पड़ा मुझे

कितना दूर निकल गए रिश्ते निभाते निभाते
खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते
लोग कहते है दर्द है मेरे दिल में
और तुम थक गए मुस्कुराते मुस्कुराते