खुलसे इश्क़ न जोशे अमल न दर्द ए वतन; ये ज़िन्दगी है ख़ुदाया कि ज़िन्दगी का क़फ़न।

दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब; मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं।

अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल; लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे।

तुम और किसी के हो तो हम और किसी के; और दोनों ही क़िस्मत की शिकायत नहीं करते।

काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा; रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा।

देखी है बेरुखी की आज हम ने इन्तहा मोहसिन ; हम पे नज़र पड़ी तो वो महफ़िल से उठ गए।

बदले तो नहीं हैं वो दिल-ओ-जान के क़रीने; आँखों की जलन दिल की चुभन अब भी वही है।

ए दिल ये तू ने कैसा रोग लिया मैंने अपनों को भुला के एक ग़ैर को अपना मान लिया!

बंद मुट्ठी से जो उड़ जाती है क़िस्मत की परी; इस हथेली में कोई छेद पुराना होगा।

दुनिया में मत ढूंढ नाम ए वफ़ा फ़राज़ ; दिलों से खेलते हैं लोग बना के हमसफ़र अपना।

​​गुज़र गया वो वक़्त जब तेरे तलबगार थे हम; अब खुद भी बन जाओ तो सजदा ना करेंगे​।

कहने देती नहीं कुछ मुँह से मोहब्बत मेरी; लब पे रह जाती है आ आ के शिकायत मेरी।

उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे वसीम ; लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी।

मुझ से बहुत क़रीब है तू फिर भी ऐ मुनीर ; पर्दा सा कोई मेरे तिरे दरमियाँ तो है।

दिल जलाने की आदत उनकी आज भी नहीं गयी; वो आज भी फूल बगल वाली कबर पर रख जाते हैं।