दस्तूर-ए-उल्फ़त वो निभाते नहीं हैं; जनाब महफ़िल में आते ही नहीं हैं; हम सजाते हैं महफ़िल हर शाम; एक वो हैं जो कभी तशरीफ़ लाते ही नहीं हैं!

कोई चला गया दूर तो क्या करें; कोई मिटा गया सब निशान तो क्या करें; याद आती है अब भी उनकी हमें हद से ज्यादा; मगर वो याद ना करें तो क्या करें।

मोहब्बत नहीं है कोई किताबों की बाते! समझोगे जब रो कर कुछ काटोगे रातें! जो चोरी हो गया तो पता चला दिल था हमारा! करते थे हम भी कभी किताबों की बाते!

मोहब्बत मुक़द्दर है एक ख्वाब नहीं; ये वो अदा है जिसमे सब कामयाब नहीं; जिन्हें पनाह मिली उन्हें उँगलियों पर गिन लो; मगर जो फना हुए उनका कोई हिसाब नहीं।

ज़िंदगी से चले हैं अब इल्ज़ाम लेकर; बहुत जी चुके हैं अब उनका नाम लेकर; अकेले बातें करेंगे अब वो इन सितारों से; अब चले जायेंगे उन्हें यह सारा आसमान देकर।

हकीक़त कहो तो उनको ख्वाब लगता है; शिकायत करो तो उनको मजाक लगता है; कितनी शिद्दत से उन्हें याद करते हैं हम; और एक वो हैं जिन्हें ये सब इत्तेफाक लगता है।

दर्द गैरों को सुनाने की ज़रूरत क्या है; अपने साथ औरों को रुलाने की ज़रूरत क्या है; वक्त यूँही कम है दोस्ती के लिए; रूठकर वक्त गंवाने की ज़रूरत क्या है!

इंतजार किस पल का किये जाते हो यारों; प्यासों के पास समंदर नही आने वाला; लगी है प्यास ​तो ​चलो रेत निचोड़ी जाए​;​ अपने हिस्से में समंदर नहीं आने वाला​।

मेरे दुश्मन भी, मेरे मुरीद हैं शायद.
वक़्त बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं ,
मेरी गली से गुज़रते हैं छुपा के खंजर,
रु-ब-रु होने पर सलाम किया करते हैं !!! Er kasz

वो सो जाते हैं अकसर हमें याद किए बगैर; हमें नींद नहीं आती उनसे बात किए बगैर; कसूर उनका नहीं कसूर तो हमारा ही है; क्योंकि उन्हें चाहा भी तो उनकी इज़ाज़त लिए बगैर।

खुदा जाने प्यार का दस्तूर क्या होता है; जिन्हें अपना बनाया वो न जाने क्यों दूर होता है; कहते हैं कि मिलते नहीं ज़मीन आसमान; फिर न जाने क्यूँ आसमान ज़मीन का सरूर होता है!

उन्हें एहसास हुआ है इश्क़ का हमें रुलाने के बाद; अब हम पर प्यार आया है दूर चले जाने के बाद; क्या बताएं किस कदर बेवफ़ा है यह दुनिया; यहाँ लोग भूल जाते ही किसी को दफनाने के बाद।

तेरी नज़रों से दूर जाने के लिए तैयार तो थे हम; फिर इस तरह नज़रें घुमाने की जरूरत क्या थी;​​ तेरे एक इशारे पे हम इल्जाम भी अपने सिर ले लेते​;​ फिर बेवजह झूठे इल्जाम लगाने की जरुरत क्या थी।

जो आँसू दिल में गिरते हैं वो आँखों में नहीं रहते; बहुत से हर्फ़ ऐसे हैं जो लफ़्ज़ों में नहीं रहते; किताबों में लिखे जाते हैं दुनिया भर के अफ़साने; मगर जिन में हक़ीक़त हो वो किताबों में नहीं रहते।

गर्मिये हसरत-ए-नाकाम से जल जाते हैं; हम चिरागों की तरह शाम से जल जाते हैं; शमा जलती है जिस आग में नुमाइश के लिए; हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते हैं; जब भी आता है तेरा नाम मेरे नाम के साथ; जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते हैं।