जरा सी वक़्त ने करवट क्या बदली; मेरे अपनों के नक़ाब गिर गए।
जरा सी वक़्त ने करवट क्या बदली; मेरे अपनों के नक़ाब गिर गए।
ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे; तू बहुत देर से मिला है मुझे।
दुनियां ने याद से बेगाना कर दिया; तुझसे भी फ़रेब है ग़म रोज़गार के।
ग़ज़ब किया तेरे वादे पर ऐतबार किया; तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया।
जिसकी आँखों में कटी थी सदियाँ; उसने सदियों की जुदाई दी है! गुलज़ार
एक लम्हा ना दिया साथ तुने मेरा; जबकि तेरे लिए हमने ज़िंदगी गुजार दी।
दिल से पूछो तो आज भी तुम मेरे ही हो; ये ओर बात है कि किस्मत दग़ा कर गयी।
देखा है आज मुझे भी गुस्से की नज़र से; मालूम नहीं आज वो किस-किस से लड़े है।
उठ के पहलू से चले हो तो बताते जाना; छोड़ कर जाते हो अब किसके सहारे मुझको।
घर बना कर मेरे दिल में वो छोड़ गया; न ख़ुद रहता है न किसी और को बसने देता है।
दिल वो नगर नहीं है कि फिर आबाद हो सके; पछताओगे सुनो हो ये बस्ती उजाड़ कर।
हमने मांगी थी उनके जीवन की ख़ुशी; उन्होंने हमारी ख्वाहिश-ए-कज़ा भी छीन ली।
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें; हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया।
शर्मिंदा होंगे जाने भी दो इम्तिहान को; रखेगा कौन तुम को अज़ीज़ अपनी जान से।
वो अपनी ज़िंदगी में हुआ मशरूफ इतना;वो किस-किस को भूल गया उसे यह भी याद नहीं।