तू भी औरों की तरह मुझ से किनारा कर ले; सारी दुनिया से बुरा हूँ तेरे किस काम का हूँ।

आस पास तेरा एहसास अब भी लिये बैठें हैं; तू ही नज़र अंदाज़ करे तो हम शिकवा किससे करें!

अक्सर तन्हाई में सोच कर हँस देता हूँ की मुझे
सब याद है लेकिन मैं किसी को याद नही

जता-जता के मोहब्बत दिखा-दिखा के ख़ुलूस; बहुत क़रीब से लूटा है मेरे दोस्तों ने मुझे।

यह अजब क़यामतें हैं तेरी रहगुज़र में गुज़ारी; ना हो के मर मिटें हम ना हो के जी उठें हम।

रहते थे कभी जिनके दिल में हम अज़ीज़ों की तरह; बैठे हैं हम आज उनके दर पे फकीरों की तरह।

कदम रुक से गए हैं फूलों को बिकते देखकर
वो अक्सर कहा करती थीं की मोहबत फूल जैसी है

तेरा नज़रिया मेरे नज़रिये से अलग था शायद तुझे वक्त गुज़ारना था और मुझे जिन्दगी।

तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर;​​​ डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला।

अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम पर,
अगर तुम चाहते तो ये मोहब्बत ख़त्म ना होती..

बहुत ज़ालिम हो तुम भी मोहब्बत ऐसे करते हो; जैसे घर के पिंजरे में परिंदा पाल रखा हो।

तुम्हें ही कहाँ फ़ुरसत थी मेरे पास आने की; मैने तो बहुत इत्तला की अपने गुज़र जाने की।

अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख; एक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है।

वो लफ्ज कहां से लाऊं जो तेरे दिल को मोम कर दें; मेरा वजूद पिघल रहा है तेरी बेरूखी से।

मुझे ना सताओ इतना की मैं रुठ जाऊ तुमसे ...! मुझे अछा नहीं लगता अपनी सासों से जुदा होना ...!