आए ही तो थे तेरे दर पर; ऐसा क्या कर गये थे हम; तुम चाहने लगे हो औरो को; ऐसा क्या मर गये थे हम।

निकले थे इसी आस पे कि किसी को अपना बना लेंगे; एक ख्वाहिश ने उम्र भर का मुसाफिर बना दिया।

सो जा ऐ दिल कि आज धुन्ध बहुत है तेरे शहर में; अपने दिखते नहीं और जो दिखते है वो अपने नहीं।

हाल-ए-दिल ना-गुफ़्तनी है हम जो कहते भी तो क्या; फिर भी ग़म ये है कि उस ने हम से पूछा ही नहीं।

बस एक ही गलती हम सारी ज़िन्दगी करते रहे मोहसिन; धूल चेहरे पर थी और हम आईना साफ़ करते रहे।

गलत तस्वीर दिखाई उसको ही बस खुश रख पाया; जिसके सामने आईना रक्खा हर शख्स वो मुझसे रूठ गया।

हमें अपने हबीब से यही एक शिकायत है; ज़िंदगी में तो आए नहीं लेकिन हमें सपनों में सताते रहे।

अपने अपने किये पे हैं हम दोनों इतने शर्मिंदा; दिल हम से कतराता है और हम दिल से कतराते हैं।

उसकी मुहब्बत का सिलसिला भी क्या अजीब है
अपना भी नहीं बनाती और किसी का होने भी नहीं देती

मतलबी दुनिया के लोग खड़े हैं हाथों में पत्थर लेकर; मैं कहाँ तक भागूं शीशे का मुक़द्दर लेकर।

हुस्न भी था कशिश भी थी; अंदाज़ भी था नक़ाब भी था; हया भी थी प्यार भी था; अगर कुछ ना था तो बस इकरार।

कहते हैं बिना मेहनत किये; आप कुछ पा नहीं सकते; न जाने गम पाने के लिए; कौन सी मेहनत कर ली मैंने।

जिस कश्ती के मुक़द्दर में हो डूब जाना फ़राज़; तूफानों से बच भी निकले तो किनारे रूठ जाते है।

अपने सिवा बताओ कभी कुछ मिला भी है क्या तुम्हें; हज़ार बार ली हैं तुमने मेरे दिल की तलाशियाँ।

तरस जाओगें हमारे लबों से सुनने को एक एक लफ्ज़; प्यार की बात तो क्या हम शिकायत भी नहीं करेंगे!