उस की आँखों में नज़र आता है सारा जहाँ मुझ को; अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा मैंने।

​​हमारी आरजूओं ने हमें इन्सां बना डाला​;​​​वरना जब जहां में आये थे बन्दे ​​​थे खुदा के​।​

तुम्हारी नाराजगी से कोई गिला नहीं अगर तुम खुश हो; हम तो तुम्हारी खुशी में खुश होना जानते हैं!

तु वो ज़ालिम है जो दिल में रह कर भी मेरा ना बन सका; और दिल वो काफ़िर जो मुझ में रह कर भी तेरा हो गया।

ना रोया कर सारी-सारी रात किसी बेवफा की याद में; को खुश है अपनी दुनिया में तेरी दुनिया उजाड़ कर।

जिन्हें गुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते है​;​ मैंने झूठों को अक्सर मुस्कुराते हुए देखा है​।

कोई मुझ से पूछ बैठा बदलना किसे कहते हैं? सोच में पड़ गया हूँ मिसाल किस की दूँ? मौसम की या अपनों की।

हमें नींद की इज़ाज़त भी उनकी यादों से लेनी पड़ती है; जो खुद आराम से सोये हैं हमें करवटों में छोड़ कर।

हमें भुलाकर सोना तो तेरी आदत ही बन गई है अय सनम; किसी दिन हम सो गए तो तुझे नींद से नफ़रत हो जायेगी।

तकदीर बनाने वाले तूने भी हद कर दी; तकदीर में किसी और का नाम लिखा था; और दिल में चाहत किसी और की भर दी!

तुझे दुश्मनों की खबर न थी मुझे दोस्तों का पता नहीं; तेरी दास्ताँ कोई और थी मेरा वाकिया कोई और है।

चल रहे हैं इस ‪‎दौर में ‪रिश्वतों‬ के ‪सिलसिले‬; ‪तुम‬ भी कुछ ‪‎ले देके‬ ‪मेरे‬ क्यों नही हो जाते?

शिकायत है उन्हें कि हमें मोहब्बत करना नही आता; शिकवा तो इस दिल को भी है; पर इसे शिकायत करना नहीं आता।

इश्क़ करना तो लगता है जैसे मौत से भी बड़ी एक सज़ा है; क्या किसी से शिकायत करें जब अपनी तक़दीर ही बेवफा है।

मैं किसी को क्या इल्ज़ाम दूँ अपनी मौत का दोस्तो; यहाँ तो सताने वाले भी अपने थे और दफ़नाने वाले भी अपने।