​सिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने तुम्हें​;​कि तुम जो सीख लेते हो हम पर आज़माते हो​।

मुझे शिकवा नहीं कुछ बेवफ़ाई का तेरी हरगिज़; गिला तब हो अगर तूने किसी से भी निभाई हो।

तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी; तेरा मुड़-मुड़कर देखना हमें बदनाम कर गया।

ये दूरियां तो मिटा दूँ मैं एक पल में मगर; कभी कदम नहीं चलते तो कभी रास्ते नहीं मिलते।

मुझे शिकवा नहीं कुछ बेवफ़ाई का तेरी हरगिज़; गिला तब हो अगर तू ने किसी से भी निभाई हो।

हम भी बिकने गए थे बाज़ार-ऐ-इश्क में; क्या पता था वफ़ा करने वालों को लोग ख़रीदा नहीं करते।

हम भी बिकने गए थे बाज़ार-ऐ-इश्क में क्या पता था वफ़ा करने वालो को लोग ख़रीदा नहीं करर्ते!

तुम्हारी नफरत पर भी लुटा दी ज़िन्दगी हमने; सोचो अगर तुम मोहब्बत करते तो हम क्या करते।

​मैं पा नहीं सका आज तक इस खलिश से छुटकारा​;​​तु मुझे जीत भी सकता था मगर ​हारा क्यूँ​।

अजीब मजाक करती हैं यह नौकरी
काम मजदूरों वाले कराती हैं और लोग साहब कहकर बुलाते हैं

बिन मांगे ही मिल जाती हैं ताबीरें किसी को; कोई खाली हाथ रह जाता है हजारों दुआओं के बाद!

प्यार के नाम पे यहाँ तो लोग खून पीते हैं; मुझे खुद पे नाज़ है कि मैं सिर्फ शराब पीता हूँ।

दिल तो चाहा पर शिकस्त-ए-दिल ने मोहलत ही न दी; कुछ गिले-शिकवे भी कर लेते मुनाजतों के बाद।

आज बो कलम ही टूट गयी
जो हमारी मोहब्बत की किस्से लिखा करती थी तो आज से शायरी करना बन्द

कितना अजीब है लोगों का अंदाज़-ए-मोहब्बत; रोज़ एक नया ज़ख्म देकर कहते हैं अपना ख्याल रखना।